इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करे। साथ ही इस दिन अपने दिन की शुरुआत सूर्य को अर्घ देने के साथ करें।
अपने वास्तविक कार्यों पर गंभीर बने - प्रेरक कहानी
वह शिव से हठ करके दक्ष के यज्ञ पर जाकर पाती हैं, कि उनके पिता ने उन्हें पूर्ण रुप से तिरस्कृत किया है। दक्ष केवल सती का ही नही अपितु भगवान शिव का भी अनादर करते हैं उन्हें अपशब्द कहते हैं। सती अपने पति के इस अपमान को सह नही पाती हैं और उसी यज्ञ की अग्नि में कूद जाती हैं। सती अपनी देह का त्याग कर देती हैं।
इस व्रत में अन्न का सेवन नहीं किया जाता है।
कोकिला व्रत की कहानी का संबंध शिव पुराण में भी प्राप्त होता है। कथा इस प्रकार है ब्रह्माजी के मानस पुत्र दक्ष के घर देवी सती का जन्म होता है। दक्ष विष्णु का भक्त थे और भगवान शिव से द्वेष रखते थे। जब बात सती के विवाह की होती है, तब राजा दक्ष कभी भी सती का संबंध भगवान शिव से जोड़ना नहीं चाहते थे। राजा दक्ष के मना करने पर भी सती ने भगवान शिव से विवाह कर लिया था। पुत्री सती के इस कार्य से दक्ष check here इतना क्रोधित होते हैं कि वह उससे अपने सभी संबंध तोड़ लेते हैं। कुछ समय बाद राजा दक्ष शिवजी का अपमान करने हेतु एक महायज्ञ का आयोजन करते हैं। उसमें दक्ष ने अपनी पुत्री सती और दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया था।
ऐसे में जब देवी सती को इस बात का पता चलता है कि उनके पिता दक्ष ने सभी को बुलाया लेकिन अपनी पुत्री को नहीं। तब सती से यह बात सहन न हो पाई। सती ने शिव से आज्ञा मांगी कि वे भी अपने पिता के यज्ञ में जाना चाहतीं हैं। शिव ने सती से कहा कि बिना बुलाए जाना उचित नहीं होगा, फिर चाहें वह उनके पिता का घर ही क्यों न हो।
अब आप कृपा करके मुझे भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइये। इस एकादशी का क्या नाम है तथा इसके व्रत का क्या विधान है?
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आषाढ़ पूर्णिमा के दिन रखा गया यह व्रत संपूर्ण सावन में आने वाले व्रतों का आरंभ माना जाता है। इस व्रत में देवी के स्वरूप को कोयल रूप में पूजा जाता है। कहा जाता है कि माता सती ने कोयल रूप में भगवान शिव को पाने के लिए वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या के शुभ फल स्वरूप उन्हें पार्वती रूप मिला और जीवनसाथी के रूप में भगवान शिव की प्राप्ति होती है।
इस व्रत को करने से पारिवारिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
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